Friday, November 27, 2015

रामपुरा से ताकाजी तक का सफर


ताकाजी का अद्धभुत रहस्य

ताकाजी रामपुरा से कुछ ही दुरी पर बसा एक रमणीय एंव दार्शनिक स्थान है | यहाँ पर अदभुत  जडि-बुटि का खजाना है | जरुरत है तो धनवन्तरी जैसे वैधराज की |
आईये जाने आखिर इस जगह का नाम ताकाजी क्यो है |
ह्जारो साल पहले एक राजा रह्ता था | उसी के राजपाठ में एक तक्क्षक नाम का एक सर्प रहता था | सर्प का संकल्प था ,कि वो राजा को जान से मार देगा | किन्तु राजा के राजदरबार  में एक  धनवन्तरी नाम के वैधराज रह्ते थे , जो जीव आत्मा की रक्षा करना अपना   धर्म समझते थे |
नियत तिथि के दीन वैदराज राजा को बचाने के लिए राजमहल  जा रहे थे कि माँर्ग में वेश बदले तक्क्षक राज सर्प  सामने आगये और  वैध राज की परिक्षा लेने लगे | सर्प राज ने एक हरे भरे  पेड.   को अपने विषेले जहर से सुखाँ दिया और वैध राज को पुन: हरा-भरा  करने को कहाँ , वैध राज ने जडि-बुटि के प्रभाव से केवल पेड. को हरा-भरा ही नही कियाँ बल्कि  पेड पर  फल भि लगा दिये | यहँ देख सर्प राज घबरा गये और  सोचा की वैध राज को राजमहल तक जाने से रोकना चहिए |
नाना प्रकार के प्रलोभन देने के बाद भी   जब वैध-राज अपने धर्म से विचलित नही हुये तो सर्प-राज ने एक सुन्दर लकडी.  का रुप बनाया | पीठ पर  खुजालने के लिये जैसे ही वैध-राज ने लकडी. को पिछे किया , तुरन्त सर्प-राज ने पीठ पर  काँट लिया |   वैध-राज जब अपने जीवन को बचाने में असमर्थ पाया तो अपने शिष्यो से कहाँ कि मुझे काँट कर  खाँ लेना , सब मेरे जैसे  वैध-राज बन जाओगे |
सभी शिष्य अपने गुरु को एक कडावं में पका रहे थे कि सर्प राज आगये और कहाँ कि आप अपने गुरु को खाँ जाओगे तो आपका धर्म क्या रहेगा  |  जरा सोचो जिस गुरु ने  आपको पाला  बडा किया  उसी को खाने का विचार भी मन मे लाना पाप है|  इतना सुनते ही सभी शिष्यो ने कडाव जमीन पर डोल दिया |
फल स्वरुप उस जगह को ताकाजी के नाम से जाने जाना लगा | वहाँ आज भी जडि-बुटि का असिम भन्डार है |
एसा माना जाता है कि दिवाली की अमावश्याँ कि रात को जडि-बुटि खुद अपने उपयोग के बारे में बताती है |ca2wpjbi

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